Tuesday, August 30, 2011

ये जो चुपचाप दिखते हैं, ये तूफ़ानों के रस्ते हैं

हुस्न के मैखानों मे अक्सर,  इश्क़ के जाम बरसते हैं
कुछ बदनसीब हैं हम जैसे,कि बारिश मे भी तरसते हैं

वो कॉलेज की केंटीन मे बैठे, मुड़ मुड़ के हैं देख रहे
बातें करते हैं सखियों से , पर हमें देख कर हसते हैं

ये शहरों का है प्यार, यहाँ नहीं भावनाओं की कद्र कोई
यहाँ फूल गुलाब का महँगा है और दिल बेचारे सस्ते हैं

यहाँ कंकर है पर्वत जैसा, और सूखे पत्ते शोले हैं
ये जो चुपचाप दिखते हैं, ये तूफ़ानों के रस्ते हैं.... जैलदार

No comments:

Post a Comment