Tuesday, August 23, 2011

अपनी तो इबादत का ज़रा अंदाज़ निराला है

अपनी तो इबादत का ज़रा अंदाज़ निराला है
इक हाथ मे माला है इक हाथ मे प्याला है

आँसुओं की बूँद भी शहद के जैसी है यहाँ
आशिकों के देश में, ये गम की मधुशाला है

कि तुझको आता देख ही मैं और गिर गया
क्योंकि; मैं जानता था तूँ मुझे उठाने वाला है

चाँद,तारे और हवा नशे मे धुत्त है लग रहे
ये जाम आसमान में किसने उछाला है

नज़र से ना नज़र मिला, ना बात कर
कि नीयतों को मुश्किलों से अब संभाला है ... जैलदार


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