Friday, December 3, 2010

क्यूँ मुझसे रूठ जाते हो

ना मुझसे रूठ कर यूँ दूर बैठो ओ मेरे दिलबर
के रूठों को को मनाने में ज़माने बीत जाते हैं
वो मंज़र जानलेवा है जब तेरी याद आती है
खुशी तब हार जाती है और आँसू जीत जाते हैं

क्यूँ मुझसे रूठ जाते हो
क्यूँ इतना यूँ सताते हो
के मेरे सब्र को हर पल
क्यूँ इतना आज़माते हो

क्यूँ मुझको याद करते हो
क्यूँ मुझको याद आते हो
क्यूँ तुम मेरी तरह रातों में
अक्सर जाग जाते हो

क्या पाया दूर रह कर के
के दिल में दर्द सह कर के
के उलझन हर सुलझ जाती
देखो इक बार कह कर के

यूही रूठने में हो ना जाए ज़िंदगी ज़ाया
कहीं ना अश्कों के सैलाब में रह जाउ बह कर के
जो आशाओं की नीव पे खड़ी है दिल की यह बस्ती
कहीं ना ज़लज़ले गम में ना रह जाए वो ढह कर के

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